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________________ ... श्रीमान् । स्वर्गीय सुखमें लीन सारे आधुनिक श्रीमान् हैं, हों मूर्खही चाहे अधिकपर विश्वमें विद्वान् हैं । चहुंओर उनके गेहमें गद्दे तथा तकिये पड़े, हथियार सज्जित द्वारपर दो चार सेवक भी खड़े | ६२ देखो चंदोबे रेशमी फानूस जिसमें जगमगे, बाजा पड़ा है पासमें दर्पण वहां अगणित टंगे । उनके पलंगोंपर मनोहर एक मच्छर-दान है, भूलोकमें उनका अहो ! स्वर्गीय सुख-सामान है। ६३ उनके निकटमें चापलूसोंकी विषम भरमार है, ताम्बूल हुक्केको लिये नौकर खड़ा तैयार है । संकेत करते सेठजीके काम हों पूरे सभी, नहि पहिनना पड़ता अहो ! निज बूट भी करसे कभी [ ६४ बीभत्स कितने ही टंगे हैं चित्र शयनागारमें, यहते रहेंगे सर्वदा शृङ्गार रसकी 'धारमें। चिन्ता नहीं कुछ भी उन्हें कोई मरे अथवा जिये, आलस्य अपना पूर्णतः अधिकार उनपर है किये ।
SR No.010211
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunbhadra Jain
PublisherJinwani Pracharak Karyalaya Kolkatta
Publication Year1935
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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