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________________ (iii) जागरूक तया विवेकशील श्रावक: इस वैज्ञानिक युग में, बदलती दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलने वाला श्रावक चाहिये । वैसे भी महावीर ने हमें 'देश, काल, भाव' के अनुकूल परिवर्तन लाने की स्वतंत्रता दे रखी है। पुरानी मान्यतामों को मरी हुई बदरिया के समान गले से चिपकाये रखना कोई बुद्धिमत्ता की बात नही है: सदा एक ही रुख नही नाव चलती, चलो तुम उधर को हवा हो जिधर की। विवेकशील श्रावक (गहस्थ) इस बात का ध्यान रखेगा कि कोई उसका पुरखा या सजातीय या मित्र उसे एकता के पथ से विचलित तो नही कर रहा । 'एकता की पतवार' को अब हरगिज़ नही छोडना है और एकता विरोधी प्रवृत्तियो का बहिष्कार करना है। विवेकशील श्रावक को 'सहिष्णुता' से प्यार करना होगा। दूसरो के दृष्टिकोण को अपने दृष्टिकोण में स्थान देना होगा। विवेकशील तथा प्रगतिशील श्रावक उस नेतृत्व को स्वीकार नही करेगा जो 'भेद-नीति' का पोषक हो। जागरूक श्रावक अपने धार्मिक नेता तथा राजनीतिक नेता दोनों के समक्ष अपना स्वतत्र दृष्टिकोण पेश करने में नही हिचकिचायेगा। भगवान् महावीर ने सद्गृहस्थ श्रावक को 'मुनियों के माता पिता' की संज्ञा दी है, क्योकि मुनि को उत्तम श्रमण धर्म पालन करने के लिये व अपने जीवन निर्वाह के लिये 'श्रावक' पर निर्भर रहना पडता है । (1v) केन्द्रीय धर्माचार्य-समितिःइस समिति मे सभी जैन सम्प्रदायो के महान् प्राचार्य सम्मिलित
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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