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________________ प्रतिष्ठित कर आपसी झगड़ों को दूर किया। समाज में घणा का स्थान सहिष्णुता और पारस्परिक प्रेम ने ले लिया जो शक्ति का परिचायिक बना। (iii) समानता:जैन धर्म ने जाति-भेद, रम-भेद, लिङ्-भेद, भाषा-भेद को दूर किया । इसलिये साधारण जनता ने हृदय से इस धर्म का स्वागत किया। (iv) परिवर्तन की क्षमता:जैन चिंतकों ने सामाजिक परम्परा को 'शाश्वत' का रूप नहीं दिया । इसीलिये, जैसा कि ऊपर वर्णन किया जा चुका है, समाज में 'देश' और 'काल' के अनुसार परिवर्तन का अवकाश रहा। यह जनता के आकर्षण का सबल हेतु था । (v) सैद्धांतिक सहिष्णुता:दूसरे धर्मों के सिद्धांतों को सहने की क्षमता के कारण जैन धर्म दूसरो की सहानुभूति अजित करता रहा। (vi) जैन भाषाःजैन तीर्थंकरों और आचार्यों ने अपना उपदेश रोजमर्रा बोली जाने वाली जन-साधारण की भाषा में दिया । उन्होने देव-भाषा (संस्कृत) का मोह नही किया। इसी लिये जैनों के धर्म शास्त्र (जैनागम) अधिकतर 'मागधी' अर्द्ध मागधी', 'प्राकृत', शौरसेनी', 'महाराष्ट्री' तथा 'अपभ्रंश' भाषामो में मिलते है । (vii) अहिंसा का व्यवहार में प्रयोग:इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि पशु-हिंसा यज्ञों में नितात
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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