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________________ ३६ (ई) संज्वलन क्रोध:- पानी में खिची रेखा के समान जो खीचने के साथ ही मिट जाती है । कषाय का दुष्परिणाम ससार के जीव आज तक भोगते चले आ रहे है । कषाय ने ही प्रेम, प्यार और प्रतीति का नाश किया है । राग-द्वेष ही विष-वृक्ष है । वासना और कषाय से राग द्वेष को जन्म मिलता है । माया व लोभ से आसक्ति तथा आसक्ति से राग का प्रादुर्भाव होता हैं । क्रोध व मान से घृणा की उत्पत्ति हुई है और घृणा से द्वेष पैदा होता है । घृणा व आसक्ति ने ही वैर व ममता को आश्रय दिया है । समस्त ससार वासना और कषाय की अग्नि में जल रहा है । भगवान् महावीर ने अपने सुन्दर प्रवचन में कहा है ― “शान्ति से क्रोध को मृदुता से मान को सरलता से माया को और सतोष से लोभ को जीतना चाहिए ।"
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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