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________________ ३४ नील लेश्या - कुछ अच्छी मनोवृत्ति किन्तु ईर्ष्या, असहिष्णुता, लोलुपता युक्त । कापोत लेश्या - मन, वचन, कर्म से वक्र परन्तु अपने स्वार्थ के साथ जीवों का भी संरक्षण करता है । तेजोलेश्या – नम्र, दयालु, इद्रियजयी । केवल अपने सुख की ही अपेक्षा नहीं रखता अपितु दूसरों के प्रति भी उदार होता है । पद्य लेश्या — कमल के समान अपनी सुगंधी से दूसरों को सुख देने वाला । सयमी, कषायों ( क्रोध, मन, माया, लोभ) पर विजय पाने वाला, मितभाषी, सौम्य । शुक्ल लेश्या - अत्यन्त शुद्ध मनोवृत्ति, समदर्शी, निर्विकल्प, ध्यानी, सावधान, वीतराग । पहली तीन लेश्याएं त्याज्य हैं और अतिम तीन लेश्याएं ग्रहण करने योग्य हैं । कषाय - कष और आय । कष का अर्थ है कर्म अथवा परिणाम में जन्म मरण । जिससे कर्मों का प्राय या बंधन होता है अथवा जिससे जीव को पुनः पुनः जन्म मरण के चक्र में पड़ना पड़ता है वही 'कषाय' कहलाता है । जो मनोवृत्तियाँ आत्मा को कलुषित करती हैं, जिनके प्रभाव से आत्मा अपने स्वरूप से भटक जाता है मनोविज्ञान की भाषा में वह कषाय है | आवेश और लालसा की वृत्तिया कषाय को जन्म देती हैं । कषाय चार प्रकार के है : लोभ, क्रोध, मान, माया, (अ) क्रोध: - यह मानसिक किन्तु उत्तेजक संवेग है । यह विचार शक्ति एवं तर्क शक्ति को शिथिल करता है। आवेश युयुत्सा (युद्ध) को
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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