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________________ अध्याय तीर्थंकर-संसार सागर का खिवैया अधेरी रात थी। आकाश पर बिजली कडक रही थी। नदी में ऊँची ऊँची तरगे उठ रही थी । ऐसे समय में एक यात्री आया, उसने नदी के उस पार जाना था। उसे अवश्यमेव नदी पार उतरना था। यात्री जोर से चिल्लाया, "है यहाँ कोई चतुर नाविक जो मुझे पार ले जाये ?" यात्री की आवाज सुनी अनसुनी हो गई। आकाश में बिजली जो चमकी तो उसे थोड़ी दूर पर दो-तीन नावें खडी दिखाई दी। यात्री उनके पास गया। बड़ी अनुनय विनय की परन्तु कोई नाविक अपनी नाव को और अपने आपको इस जोखिम में डालने के लिए तैयार न हुआ। ___ इतने मे एक दिव्य घटना हुई। सामने से एक विशाल-काय तथा देदीप्यमान ललाट वाला व्यक्ति आता दिखाई पड़ा। उस दिव्य पुरुष ने कहा, "यात्री, क्यो चिन्ता में डूबे हुए हो ? प्रायो, मेरी नाव में बैठो । हजार बिजली कड़के, नदी में तूफान आए परन्तु तुम्हारा बालबांका नहीं होगा। यात्री प्रभावित हुआ और विश्वास करके उस दिव्य नाविक की नाव में बैठ गया। विकराल नदी-तरंगों और भीषण जल-जन्तुओं के मध्य में से नाविक अपने कला-कौशल से नाव को नदी के उस पार ले गया। यात्री ने सुख की सांस ली और कहा, "मेरे रक्षक ! मेरे देवता कैसे आपका धन्यवाद करू ? बदले में आपकी क्या सेवा-चाकरी करूं? कितनी राशि यात्रा-शुल्क में दूं? "
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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