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________________ १३२ पीछे जाने पर दूतल्ला सभागह मिलता है जो इन्द्रसमा के नाम से प्रसिद है । दोनों तलो में प्रचुर चित्रकारी बनी हुई है ।ऊपर की शाला 12 सुखचित खम्भों से अलंकृत है । शाला के दोनो ओर भगवान महावीर की विशाल प्रतिमाएं हैं और पास ही कक्ष में इन्द्र और हाथी की मतियां बनी हुई हैं। इन्द्र सभा की एक बाहरी दीवाल पर 'पार्श्वनाथ की तपस्या व कमठ द्वारा उनपर किये गये उपसर्ग का' बहुत सुन्दर व सजीव उत्कीर्णन किया गया है। पार्श्वनाथ कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यानस्थ हैं । दक्षिण की दीवाल पर लताओ से लिपटी 'बाहुबलि की प्रतिमा' उत्कीर्ण है । अनुमानतः इन्द्र सभा की रचना तीर्थकर के जन्म कल्याणक उत्सव की स्मृति में हुई है । इन्द्र सभा के समीप ही 'जगन्नाथ समा है, जिसका विन्यास इन्द्र सभा के सदृश ही है। इन गुफाओ का निर्माणकाल 800 ई. के लगभग माना जाता है। 13. दक्षिण त्रावणकोर: यह त्रिवेन्द्रम नगरकोइल मार्ग पर स्थित कुजीपुर नामक ग्राम से पाचमील उत्तर की ओर पहाड़ी पर है जो अब भी भगवती मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है । शिला के गुफा भाग के दोनों प्रकोष्ठो मे विशाल पद्मासन जिन मूर्तियाँ सिहासन पर प्रतिष्ठित हैं । शिला का समस्त भाग (अंदर-बाहरी) जैन तीर्थकरों की कोई 30 उत्कीर्ण प्रतिमाओं से अलंकृत्त है । कुछ के नीचे केरल की प्राचीन लिपि 'वत्तजेत्यु' में लेख भी है जिनसे उस स्थान का जैनत्व तथा निर्मिति काल 9वों शती सिद्ध होता है। 14. प्रकाई-तंकाई गुफा-समूहःथेवला ताल्लुके में मनमाड रेलवे जंकशन से नौ मील दूर अंकाई
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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