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________________ ११० ( 9 ) मल्लवादी: यह प्रबल तार्किक थे। प्राचार्य हेमचंद्र ने अपने व्याकरण में लिखा है कि सब तार्किक मल्लवादी से पीछे है । 'द्वादशारनयचक्र' इन द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रंथ है जो उपलब्ध नही है, किन्तु उस पर सिंह क्षमाश्रमण द्वारा लिखित टीका अवश्य मिलती है । + मल्लवादी ने सिद्धसेन दिवाकर कृत 'सम्मति तर्क' पर पालोचना ( Commentary) लिखी है जो प्रप्राप्य है । आचार्य हरिभद्र ने अपने 'अनेकातजयपताका' ग्रंथ में इनका 'वादिमुख्य' नाम से उल्लेख किया है । मल्लवादी विक्रम को 18वी शती से पूर्व हुए । (10) अकलक० : यह जैन न्याय के प्रतिष्ठाता थे । यह प्रकाण्ड पण्डित, धुरधर शास्त्रार्थी और उत्कृष्ट विचारक थे। जैन न्याय को इन्होने जो रूप दिया उसे उत्तरकालीन जैन ग्रंथकारों ने अपनाया । स्वामी समतभद्र के यह सुयोग्य उत्तराधिकारी थे । उनके 'प्राप्तमीमासा' ग्रन्थ पर 'अष्टशती' नामक माध्य की रचना की । इनकी रचनाएँ दुरूह मौर गम्भीर है । इनके निम्नलिखित ग्रन्थ प्रकाश में आ चुके हैं: 1. अष्टशती 2. लघीयस्त्रय 3. प्रमाण संग्रह 4. न्याय विनिश्चय 5. सिद्धि विनिश्चय 6. तत्वार्थ राजवार्तिक ( 11 ) हरिभद्र सूरी: आप आठवी शती ई० में संस्कृत तथा प्राकृत मे अनेक ग्रन्थों के कर्त्ता हुए । इन्होंने गद्य एव पद्य में खूब लिखा । भारतीय दर्शन में 'षड्दर्शन समुच्चय' नामक इनका ग्रन्थ एक विशद आलोचना है । दर्शन विषय पर इनके अन्य रचित शास्त्र निम्नलिखित हैं: -- 3. ललित 1. अनेकात प्रवेश 2. अनेकात जयपताका विस्तार 4. शास्त्रवार्ता समुच्चय 5. द्विजवदन
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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