SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय 13 जैनाचार्यों की साहित्य-सेवा पागम ग्रन्थो से सम्बन्धित अनेक उत्तरकालीन रचनाएँ की गई जिनका उद्देश्य आगमो के विषय को सक्षेप या विस्तार से समझाना था। ऐसी रचनाए चार प्रकार की है:1. नियुक्ति (रिणज्जुति') 2. भाष्य ('भास') 3. चूर्षिण ("चुधिण') 4. टीका या वृत्ति 1. 'नियुक्तियाँ' अपनी भाषा, शैली व विषय की दृष्टि से सब प्राचीन है। ये प्राकृत पद्यो में लिखी गई है और सक्षेप में विषय का प्रतिपादन करती हैं। इनमें प्रसंगानुसार विविध कथाप्रो व दृष्टांतों के संकेत मिलते हैं। इस समय प्राचाराग आदि 9 आगमो की नियुक्तियां मिलती है और वे 'भद्रबाहु' (द्वितीय) कृत मानी जाती है । 2. 'भाष्य' भी प्राकृत गाथाओ में रचित सक्षिप्त प्रकरण हैं। यह 'कल्प' आदि 'पाठ आगमो' पर लिखे गये है। 'संधदास गरिण' व 'जिनभद्र' ने कई आगमो पर भाष्य लिखे है। 3. धुरिणयाँ:-भाषा व रचना शैली की दष्टि से अपनी विशेषता रखती है। वे प्राकृत-सस्कृत मिश्रित गद्य मे लिखी गई है । लगभग 18 आगमों पर 'जिनदास गणि महत्तर' ने ईसा की सातवी शताब्दी में धूणियां लिखीं। 4. वृत्तियां संस्कृत मे विस्तार से लिखी गई हैं । 'हरिभद्रसूरी',
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy