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________________ जैन भजन तरंगनी। बीरता दिलमें हो दुखियों की मदद के वास्ते । हो दयाका भाव भूकोंकी मदद के वास्ते । अर्जुन और करण सा बनादो हमें ॥४॥ है मोहब्बत सबमें सब नफरत हिकारत छोड़ दें। न्यायमत परचार विद्या हो जहालत छोड़ दें। स्वामी यह गुरुमंत्र सिखादो हमें ।। ५ ।। -:0: चाल---कौन कहता है कि मैं तेरे खरीदारी में है। अय दयामय विश्व में मंगल करन तूही तो था। सब चराचर का हितु और दुख हरण तूही तो था।१ थे जो करता के गलत मसलों के हामी हर तरफ ।। उनका नय परमाण से दन्दाशिकन तूही तो था ॥२॥ यज्ञ में चलते थे खंजर बेजुबानों पर सदा। सुनने वाला उनका फर्यादी सखुन तूही तो था ॥३॥ खून के बहते थे दरिया रात दिन इस हिन्द में । इस जुलम का और सितम का बेखकैन तूही तो था ४ रहम करता कोई उनपर कौन था किसकी मजाल । बस दया का रहमका साँएफिगन तूही तो था ।। ५॥ रागसे और देशसे न्यामत कोई खाली नहीं। अय प्रभू इक बीतरागी पुर अमन तू ही तो था ६॥ १ मुंह तोड़ उत्तर देना ॥ २ करुणारूपी वचन ॥ ३ जड़ से उखाड़नेवाला || ४ साया करने वाला ॥५शान्तमय ।
SR No.010209
Book TitleJain Bhajan Tarangani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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