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________________ जैन भजन तरंगती । १० घटती है कौम दिन व दिन है क्ल तेरा घटा दिया || ३ || औरों को देख किस तरह आगे कदम बढा रहे । विद्या में धन में धर्म में पीछे तुझे हटा दिया ॥ ४ ॥ तेरी तबाहियों का ही सुनते हैं जिक्र जावजा - तेरी ही गफलतों ने है बुजदिल तुझे बना दिया ॥ ५ ॥ गर उन्नति चाहे तो चल संसार की रफ्तार पे न्यामत ने रार्ज़ खोलकर सारा तुझे सुना दिया || ६ || ૐ वाल--प्रभू भक्ती में प्रेम लगाये सना ॥ प्रेम भक्ती सभी को सिखाते चलो । सबकी सेवा में सरको झुकाते चलो ॥ टेक ॥ माने न माने कोई उनकी मर्जी । तुम अपनी तरफ से मनाते चलो || १ || कुरीति में दौलत लुटी जा रही है । बचा तुम सको तो बचाते चलो || २ || जुलम का सितम का बुरा है नतीजा | दया में कदम को बढाते चलो ॥ ३ ॥ है बिगड़ी हुई बैश जाती की हालत । जो तुमसे बने सो बनाते चलो || ४ || आपस के झगड़े घरों की लड़ाई | १ कम हिम्मत २ मामला
SR No.010209
Book TitleJain Bhajan Tarangani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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