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________________ mummmmmm - (६८) वह सबका स्वामी । तिहूं जगमें नामी ॥ है उसको सारे चराचर का ज्ञान। हितकारी, सुखकारी, दुखहारी, नित ॥ हां हां हां ।। प्यारे ॥ १॥ प्यारे परमातम के तू गुणको गाले। | तू गुणको गाले । नकशा जमाले। हारे उसका हृदय में ध्यान लगाले ॥ प्यारे॥ जो कोई ध्यावेगा। सुरपदवी पावेगा। मुक्ती को जावेगा पावेगा ज्ञान । सब दर्शी, सबदर्शी, सब दी. नित। हां हां हां ॥प्यारे॥२॥ प्यारे जरा कर्मों का कोट उडाले। सम्यक्त बंदूक भर ज्ञान गोली, चारित्र टोपी चढ़ाले । प्यारे । राग को छोड़िये, द्वेष को तोड़िये, बंदूक छोड़िये । हड्डड धड़ीम ॥ न्यामत हो, झटपट हो, झटपट हो फेर। धररर धूम ।। प्यारे० ॥३॥ - % 3D तर्ज ॥ (चतुरमुकट ) कंथ बिन कैसे जीऊ मेरी जान ॥ स्वप्ना सच मत जानियो, क्या स्वप्ने की बात । स्वप्ने में साजन मिले, करी नहीं दो बात ॥ कंथ०॥ धर्म बिन कोई न जगमें सार । धर्म बिन० ॥ टेक ॥ यह संसार असार में कोई न अपना जान । - - - - -
SR No.010208
Book TitleJain Bhajan Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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