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________________ pune (६३) काल अनंती नर्को में भोगे। .. . बरषों के दुखड़े सिर पे उठा ।। जिन० ॥१॥ स्वर्गों में सुरियन संग राचा! दुख पायो मालाको लखा ॥ जिन० ॥२॥ कष्ट सहे मानुष भव गरभमें। बालापन अज्ञान रहा । जिन० ॥३॥ तरुण हुआ विषयों में लागा। निश दिन रहा काम आंखोंमें छा । जिन०॥४॥ आयां बुढ़ापा ममताने घेरा। . तीनों पन युही दीने रुला ॥ जिन० ॥५॥ . नर भव सुगति न्यायमत तूने पाई। खोवे अकाज मत धोके में आ ॥ जिन ॥६॥ । - तर्ज ॥ मब तुम बिन लछमन भैय्या नैय्या डूब चली मंझधार ॥ अब श्रीजिन भक्ती बिनारेजिया तेरी कौन बंधावे धीर । टेका। जपो जपो नित श्री अरिहंत सनमति और महाबीर । . -एजी बर्द्धमान अतीवीर जपोजिया और जपो जय बीर। अब०१|| नर्क निगोद सभी फिर आयो सही अनंती पीर । स्वगामें मालाको लखजिया हुआ बहुत दलगीर ।। अब० ॥२) गर्भ माहि दुर्गति दुख भोगे पीयो रुधिर शरीर । कष्ट थकी बाहर आयो जिया नहीं अंगपे चीर ॥ अब० ॥३॥ - - - - -
SR No.010208
Book TitleJain Bhajan Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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