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________________ - -- (३६) | जिन मुद्रा धार जिन मुद्रा धार। कहीं देखे० ॥ टेक ॥ शीत समय तटनीतट गढ़े शीत सहें सुमता को विचारकहीं।। ग्रीषम ध्यान धरेंगिरवर पर। तपकर करें कर्मों का संधार ॥ कहीं ॥२॥ वर्षा ऋतु तरुवर के नीचे। क्षण क्षण सहें बून्दों की पछार ।। कहीं० ॥३॥ न्यामत.जो ऐसे गुरु मिलजां। क्षण में कर देवें उद्धार ॥ कहीं० ॥.४ ॥ ॥ - ३ - % 3A ३ - तज ॥ हमने दर परदा तुझे माहजनों देख लिया। . . _ अव न कर परदा कि ओ परदेनशी देख लिया। हमने अपनेही में वह माहजबीं देख लिया। अब नहीं पी रहा पर्दै नशीं देख लिया ।।टेक॥ मारे फिरते थे कहीं दहर में हूरों के लिये । हमने वह रशके कमर आत्र यहीं देख लिया । हमने०॥१॥ सख्त नादानी है लोगों की जो परियों पे मरें। क्यों परीजाद को हृदय में नहीं देख लिया ॥ हमने ॥२॥ कौन मुश्किल है जो कहते हो कि कैसे देखें। शीशै दिल को किया साफ वहीं देख लिया ॥ हमने०॥३॥ न्यायमत मसले मसायल का तो कायल है नहीं। . हमने तो करके तजुर्बा भी यहीं देख लिया ॥ हमने०॥४॥ - -
SR No.010208
Book TitleJain Bhajan Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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