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________________ (३२) चेतन को जगत फंद में बीता अनादि काल। न्यामत तुम्हारी बात में कुछ भी असर नहीं ॥ ३ ॥ -- - तर्ज ॥ अरे मुवे छोड़ो मेरी चैय्यां रे मुरकयाँ । सुनियो सुमति अरदास हमारी। विनती हमारी प्यारी अरज हमारी ॥ सुनियो० ॥ टेक ॥ जग महाराणी प्यारी सब सुखदानी। दुक्ख मिटानी मेरी सुनियो पुकारी । सुनियो० ॥ १ ॥ | सबक्री प्यारी महा उपकारी। लाखों पहुंचाए तूने मुक्ति मंझारी । सुनियो० ॥२॥ सुर नर मुनि तेरा यश गावें।। शीस नवावें तेरे चरण पियारी ।। सुनियो० ॥ ३॥ श्रीजिन हैं तेरे हितकारी। वह सुखकारी दुखहारी हितकारी ॥ सुनियो० ॥ ४ ॥ कुमता के छलबल अधकारी। चेतन को लावो प्यारी दुखसे निकारी । सुनियो० ॥५॥ न्यामत को नित सीख सुनावो। तू सब जाने जिन बाणी मेरी प्यारी ॥ सुनियो० ॥६॥ - . तर्ज ॥ राजा वल मत दे दान ज़मीका॥ अरे जीया मतकर संग बिषयनका ॥ टेक ॥ रावण ने कुलनाश करायो। - -
SR No.010208
Book TitleJain Bhajan Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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