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________________ - - -- - (१०) न यह तेरा दर है न यह तेरा घर है।॥१॥ कहो कौन से शह जाना है तुझको । तेरे साथ में भी कोई राहबर है ।। २ ।। है अफसोस न्यामत तू गाफिल है इतना । न यहाँ की खबर है न व्हां की खबर है ।। ३ ।। - - - तर्ज । मेरी शाह का तुम असर देख लेना । वह आयेंगे था जिगर देख लेना ।। सिया हरने का यह असर देख लेना। कि तनसे जुदा अपना सर देख लेना ।। टेक ।। सती को चुराते हो वनमें अकेली। नझा टोटा अपना मगर देख लेना ॥ १ ॥ मेरे हाथ लाना है बस जहर कातिल । बुरा है मुझे बद नजर देख लेना ॥२॥ अरे मानले कहना मेरा तू रावण । वगरना नरक अपना घर देख लेना ॥३॥ बदी वीज बोवेगा जो कोई न्यामत । मुसीवत के उसमें समर देख लेना ॥४॥ ...... . . ... तर्जा लोरठ अधिक स्वरूप रूपका दिया न जागा,मोल ॥ .... . जय जय श्री अरिहंत आज हम पूजन को आए । टेक॥ | काम सरा सब मोमन का जब तुम दर्शन पाए । - - -
SR No.010208
Book TitleJain Bhajan Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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