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________________ ___ श्री श्री १०८ श्री जीतमलजी स्वामी कृत उपदेश की ढाल लिख्यते । ॥दोहा॥ अरिहन्त देव अराधिये, निर्मल गुरू निग्रन्थ । धर्म जिन आज्ञा चितधरो, तत्व अमोलक तच्च ॥ २१ मुढ मिथ्यात मन मोहिया, थापे हिन्सा धर्म । घान्दे निर्गुण देव गुरु, ते मूल्या अज्ञानी मम ॥ २॥ कहै धर्म ने कारणे, प्राण हण्यां नहीं पाप। देव गुरु कारणे हण्या, आजा दे जिन श्राप ॥ ३॥ इस कही विरुद्ध प्ररूपता, नहीं आणे मन लाज । देवल प्रतिमा कारणे, करे अनेक अकाज ॥ ४॥ हिंसा धर्मी जोन ना, भाख्या फल अगवन्त । । ठाम ठाम सूत्र मध्ये , ते मुणजी करि खंत ॥ ५॥ • पृथ्वो हणि देवल प्रतिमा करावे, धर्म हते जीव झारे । त्यांने मन्द बुद्धि कह्या दशमें यंगे, वले पहले
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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