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________________ ॥ ढाल २२ मी ॥ ' - - - हिवे राणौ मन में जाणिया, ओता भ्रम गयो भूपाल रे । लाला । सार करे नहीं रानरी, माने लागी - कुण जंजाल रे लाला ॥ जोय जो स्वार्थ का संगार ॥ एतो मुतलब केरा यार रे .लाला जो मुतलब होतो नहीं, ती छटक दिखाड़े छह रे। लालाराजाय नमो ॥२॥ दूण राजा सुगरज सरे नहीं। नहीं चाले राजरो मार रे । लाला । किण ही जहरादिकरा जोग स. के न्हाई मार रे । लाला ॥ जो० ॥.३ ॥ एहवी करीत ये विचारणा, श्रोता कवर बुलायो पासरे"। लाला ॥ जितरी हिरदा में उपनौ, जेती कह सुनाई बाँतर ।। लाला ॥ जो० ॥ ४ ॥ बेटा थारा बाप ने मार तू, किण हो'शस्त्रादिक रा जोगरे । लाला नाराज वैसा तो भणी, म्हारे मिट जयावे दुःख में सागर । लाला ॥ जो० ॥ ५ ॥ कुमर सुणो मन चिन्तवे, आता दुष्टणी , दिसे मातरे। म्हारो पिता पिण पापी हुता, रहता लोही खरड्या हाथ रे। लाला ॥ जो. ॥६॥ ना। कहुँ तो मो दुरी, हां कहु तो म्हारो बापरे । ओता. अणबीले उठी गया डर ने रयो चुप चापर । लाला । जो० ॥ ७ ॥ कंवर अवसर रो जाण-कै. दूग पाछा न R
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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