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________________ १ ( ८१ ) दाय ए । नरनारी नांछे आपगाए । ते राजी हुवे ते घणर ए ॥ २१॥ देखा देखो बान्धे वार्म ए। देखा देखी वाधे धर्म। ए इम सांभल में नर नार ए । करज्यो आतम नो उद्धार ए ॥ २२॥ ॥ दोहा ॥ बायो मुझ में परषधा, हरण हुवी सन सांय । सगत सारू बतादरी, बोया जिया दिश जाब ॥१॥ उठण्ड लागो लिण सने, . गुरू कहे रहजे ठोका। पहली हुवे वमखिका तं, पछमत हुने अरमणोक ॥२॥ रममौका खामी किन हुवे, अरमनछोक हुवे कोम । बलता गुरु इसड़ौ काहै, राय सांभल हुवे जेम ॥३॥ - इक्ष खेत में बाग खुला, बले जटवारी शाल । ' । पहलौ तो समयीक हुने, पछै अरमलोक हुवे भूपाल ॥४॥ .। ढाल २० मी . इक्षु रहता है, ज्यांरा माका छे तारे । लामा रस. चालारे, त्यांरा बहै घणा लालाई । बह साल माबोला चे भौड़ लागी रहे है ॥ १.इच्छु रस पोलोजे रे, खाई ने दोजेरी । बोहला रस पोजे रे । देख देखने और रे वन लागे हो बसणीस इक्षुरा रहे त मुहारणा रे ॥ २ ॥
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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