SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ७६ ) वेहु तणौ ए । कला शिल्प आयरिया भणी ए । अश_णादिक च्यारू आहार ए। जिमाउं पूजा सत्कार ए ॥ ३ ॥ सिनान मंजण नाहण करौ ए। पुष्पादिक माला गलधरौ ए। देव पुष्म पहराय ए। तिक धुर पौव्यां लग खाय ए॥ ४॥ एतो संसार रा गुरु कह्याए। राजा बार अनन्तो लया ए। हिवे धर्म याचारज तणो ए। सेवा भगत करौ घणी ए ॥ ५ ॥ राय कहै धर्म आचा रज तणो एं। सेवा अगत करवी घणी ए। बन्दणा सत्कार सन्सान ए। देणो चवदे प्रकार रो दान ए. ॥ ६ ॥ बचन बिना सुभाषणो ए । ज्यांरो कुरुब घणोंहो राखणा ए। आणे मारग सुल ए। स्वामी कुण के गुरु सम तुल्य ए ॥ ७॥ गुरु आप तिरे पर तार ए । खामो गरु विना घोर अंधार ए। ज्यां राखो गुरांची प्रतित ए। जिके गया जमारो जीत ए। गुरु दौवा खुरु देव ए । नित्य कीजै गुरांची सेव ए। इम बोलना सुनियाय ए । सांभल प्रदेशौ राय ए ॥ ६ ॥ एहवा चतुर विचक्षण जाण ए1, म्हांले बोले बांकी बाण ए। थारे कां सु आई दिल मांय ए । म्हारे बिगर खमाया आय ए॥ १० ॥. हिवे सांभल ज्यो मुनिराय ए। उहांने इसड़ी आई मन मांय ए। नगर च्यातिला में मा तणो.ए। खामी कुजश फैलो छै अति घणो ए ॥ ११ ॥ म्हारी
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy