SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 14 कहै तू जाणे इसो ए। 'आसं अपराध्यांना डण्ड किसो ए ॥ २४ ॥ राजा रों खून करूं तर एन्हिान छेदी छेदी ने पूरजो २ कर ए । तांहरो अपराधी थाय ए। तन बाल तिण लगाय ए.॥ २५ ॥ ब्राह्मण रो अप राधौ घगो ए। लखण खान कागला-प गाल कूडाला ने आकार ए । सोरदागदे सांमें लिला ड़ाए ॥ २६ ॥ ऋषिश्वरां सूं रहामा बह ए । तिण ने डण्ड सूरख जड कहय ए ॥ २७ ॥ तें प्रश्न पछया बा कडा ए।-तिक क्रोध उघड टांकडा-ए। म्हार तोर मन माहए। तिल मात्र प्रावी (नांह ए ॥२८- तर बांको चरचा पूछौ घणी ए। तिण सूजड सूरख कह्योरे, तो भगो ए। बल तो बोले राय ए। खामी सांभलो म्हारी बाय ए ॥ २६ ॥ हूँ पहिलो प्रश्न' पूछिया ए। म्हारो किरतब थाने मुझिया ए। म्हारी कही मनोगमः। बात ए। तबही समझो खामी नाथ ए ॥ ३० ॥ आडा. - टेडा आण ए। मैं तो प्रश्न प्रशा जाण ए। ज्ञान तो प्राप्त भणी ए। में तो बांको चरचा पुछो घणो ए ॥३शा ज्यू ज्यू पूछ बांकोतरे ए। ज्यू ज्य जिमा धर्म री, खबर पड़े ए। जाणवा नौव अजीव ए। समकित . चारित्र नौ, नौंवाए । ३२ ॥ मैं मन में विचार इसी कियो ए । नागो में वांकी बरतियो ए। जाण पणा से
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy