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________________ (४० ) सूरियाभ बिमाण री पोल तणो। लग रह्या हार अर्द्ध हारी। देखा नैणा में सुख कारी ॥ ४ ॥ भोम तणे सोवन पसस्यो । पंच वर्गों मणियां मांहि जड़यो । देहली हंस गर्भ रतन तणौ। इन्द्रादिक गो मेज माहि भणी ॥ ५ ॥ हार ऊपर तौरसा अतरंगा । जोतक रत्ना में शोभे चंगा। पुतलियां जोहिताक तणौ । रूम रुड़ो दह दीपमान घणौ ॥ ६ ॥ वेड य रतन किंवोड़ जड्या रुड़ा। तिके छिद्र रहित दृढ़ पुरा । बनर रतन नांम सांध जड़ी तासा। बर में भोगल भोगल पासा ॥७॥ हार पासा दोन अंक रतन तणा । अनेक रत्न में घोष घणा। पोल में वेलू सोवन तणी। इसड़ी ऋद्ध रो सूरियाभ धणौ ॥ ८॥ द्वारा पासा दोनं प्रवेश धया । सोला सोलो कलशा चंदन भया । नाग दंतादिक घंटा देह तणो । तिण रो पिण छै विस्तार घणो ॥६॥ बिमाण में एक लण कहै पूरा । पांचसे जोजन छै टूरा। च्यार बाग चिहु दिश ने रूड़ा। साढी बारा जोजन तणा। कहै अधिकरो लांब पणो ॥ १०॥ पांच से जोजन उंचेरा कह्या । दोला दोला गढ बिंटी रह्या। शब्द उठे त्यां तिणारे तणो । त्यां बागांरी विस्तार घणो ॥११॥ बिमाग में एकलण कह्यो। लाख जोजन चोतराजे रह्यो । तिण ऊपर महिल सृरियाम
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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