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________________ ( २७ ) , (६२) कर्म खपावा रौ करणी दोय कही-१ संयम, २ तप । सा० सू० उत्तराध्ययन, अ० २८, गा० ३६. (६३) मार्ग दोय प्ररूप्या-१ भगवान रो प्ररूप्यो मार्ग, २ पाखण्डियांरो मार्ग । सा. सू. उत्तराध्ययन, अ० २३, गा० ६३. (६४) संवर गुण ने आसव गुण जुदा जुदा कह्या छै । सा० सू० प्र० आचारांग, अ० ४, उ० २. (६५ ) करणी ४ कही-१ इहलोक ने हित, २ परलोक ने हित, ३ कौति श्लाघा हित, ४ निर्जरा ने हित । सा० सू० दशवैकालिक, अ० ६, ७० ४. (६६ ) प्रज्ञा दोय कही-१ ज्ञान प्रज्ञा, २ पचक्वाण प्रज्ञा । सा० सू० प्र० आचारांग, अ० २, उ० ४. (६७) धर्म दोय कह्या-१ आगार धर्म, २ आणागार धर्म। सा० सू० उववाई, भगवान ने कोणिक राजा वन्दना करने गया जठे. ६८. ध्यान चार कद्या-१ आर्त ध्यान, २ रुद्र ध्यान, ३ धर्म ध्यान, ४ शुल्ल ध्यान । सा० सू० उबवाई तथा भगवती.
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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