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________________ ( २२ ) ८ बोल देवे, दिवावे, देवतां ने भलो नाणे तिणने बामासौ प्रायश्चित अावे । सा० सू० निशोथ, उ० १५ बो० १४-७५. (२६ ) वोसराया ने अणवोसराया कहे अणवोसराया ने वोमराया कहे तिण ने प्रायश्चित । सा० -सू० निशीथ, उ० १६, बो० १३-१४. (३० ) सौषा साधु होकर के सगैषा साधवों ने थानक देवे नहीं दिरावे नहीं देवतां ने भलो जाणे नहीं तो प्रायश्चित । मा० सू० निशोथ, उ० १७, बो० २२३. (३१) स्टहाथ गै व्यावच करे करावे करतो ने भलो जाणे तो प्रायश्चित । सा० म० निशोथ, उ० ११, बो० ११. (३२) सरीषौ साध्वियां ने थानक देवे नहीं दिरावे नहीं देवतां ने भलो जाने नहीं तो प्रायश्चित । सा० सू० निशीथ, उ० १७, बो० २२४. (३३ ) साधु बसे तिण थानक में न्याति, अन्य न्याति, श्रावक अथवा श्राविका आधी रात वा सारी रात राखे तो प्रायश्चित । सा० सू० निशीथ, उ० ८ वो० १२. (३४) वसे तिणने तीन करण, तीन जोग
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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