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________________ ( १७६ ) अष्टादश सौलह समय; सुदि पूनम पाषाढ़।। संयम खाम समाचस्यो स काई, गुण गिरवो दिल गाढ। पूज्यने सुमत अधिक भाई, ___ खाम भिक्षु भजले भाई। निर्मल रस समय तणा शोधी, विमल मति आप अधिक बोधौ । युगक्ष युतसे पाखण्ड जोधी, रमल दुर्गतिनो पन्थ रोधौ। दान दयादिक ऊपरे, ग्रन्थ हजारां कौध । जीव घणा ससमाविया स काई, देश देश प्रसिद्ध । पूज्यनौ दशाज अधिकाई । स्वाम० ॥ २ ॥ शिष्य गणपति नामे करणा, बत्तीसा लिखत माह निर्णा । माण बिन पगला नहीं भरणा, मज गुणसाठे उच्चरणा । गण बाहिर अवनीतड़ा, तीर्थ में न गिणाय । तसु वन्द ते जिन कह्या स कांई, आज्ञा बाहिर ताय । एह मर्यादा सुखदाई ॥ स्वाम० ॥ ३ ॥ मुनि गया मांही जे स्थाना, तथा बाहिर ते गलखाना । विहंने मिण गाना जाणो, अवगुण बोलणरा पचखायो। __ साथ नहीं लेजावणा, ते पिणछे पचखाण । ___ मन फटे जिम नहीं बोलनो स काई, यह खामनी वाण। लिखत मैंतालीसा मांहो । वाम० ॥ ४ ॥
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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