SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १७२ ) आगति | १५ कर्म भूमि मनुष्य, तिर्यंच पंचेन्द्री पहिली २५ । ५ सन्नी ५ असन्नी पर्याप्ता नारकी में गति १५ कर्म भूमि मनुष्य, तिर्यच पंचेन्द्री ४० ५ सन्नी का पर्याप्ता अपर्याप्ता ४० | आगति | १५ कर्म भूमि मनुष्य, ५ सन्नी तिर्यव का दूजी । २० पर्याप्ता नारकी मे गति उपरवत् ४० आगति १५ कर्म भूमि मनुष्य, ४ सन्नी तिर्यंच का तीजी १६ पर्याप्ता भुज पर टल्यो नारकी मे । गति उपरवत् 'आगति' १५ कर्म भूमि मनुष्य, ३ सन्नी नियंच चौथी १८ । पर्याप्ता ( भुजपर १ खेबर २ टल्यो) नारकी मे । गति । उपरवत् oc 'आगति: १५ कर्म भूमि मनुष्य, १ जलचर, १ उरपांचवी । १७ पुर का पर्याप्ता नारकी में गति उपरवत् आगत ६५ कर्म भूमि १ जलचर सन्नी का ६ पर्याप्तो छट्ठी नारकी मे गति उपरवत्
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy