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________________ अथ गतागतकी थोकड़ो। जीवका ५६३ भेदकौ बिगत | १४ सात नारकों का पर्याप्ता अपर्याप्ता । ४८ तिर्यंचका । ४ सूक्ष्म बादर पृथ्यांकायका पर्याप्ता अपर्याप्ता । ४ सूक्ष्म वादर अपकायका पर्याप्ता अपर्याप्ता 1 ४ सूक्ष्म वादर वाउकायका पर्याप्ता अपर्याप्ता । ४ सूक्ष्म बादर ते कायका पर्याप्ता अपर्याप्ता 1 ६ सूक्ष्म (वादर प्रत्येक साधारण वनस्पति कार्यका पर्याप्ता अपर्याप्ता । ६ तीन विकले का पर्याप्ता अपर्याप्ता । २० जलचर थलचर उरपर भुजपर खेचर ए पांच प्रकार का तिर्यञ्च सन्नी असन्नी का पर्याप्ता अपर्याप्ता ३०३ मनुष्यका - २०२ सन्नो मनुष्य, १५ कर्म भूमि, ३० अकर्म भूमि, ५६ अन्तर द्वीप ए १०१ का पर्याप्ता अपर्याप्ता । १०१ असन्तो मनुष्य ते सन्नी मनुष्यका मल मूत्रादि चवदे स्थानक में उपजै ते अपर्याप्ता, अपर्याप्ता अवस्था में मरे । १९८ देवताका भुवन रति १७, परमाधा मी १५, बानत्र्यंतर १६, त्रिभू - मका १०, जोतषी कल्वित्रिक ३, लोकान्तिक ६, देवलोक १२, प्रवेयक, अनुत्तर विमान ५, एह ६६ जातिका पर्याप्ता अपर्याप्ता 1 || इति || २२
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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