SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३७ ) निर्लग छत्रमें लोग नवमें कोग छबमें जौव नवमें जौव, निर्जरा । ८ वध छत्र कोण नवमें कोण छत्रमें पुद्गल, नवमें अजीव पुन्य, पाप, बंध | ६ मोक्ष छव में कोण नवमे कोग छवमें जौव, नवमें जीव, मोक्ष | || लडी १६ सोलहमी | १ धर्मास्ति छत्रमे कोण नवसे कोण छवमें धर्मास्ति, नवमें अजीव । २ अधर्मास्ति, छवसें कोण नवसें कोणा छवमें अधर्मास्ति, नवमें अजीव | ३ चाकाशास्ति, छवसें कोण नवसे कोगा छवमें चाकाशास्ति, नवमे अजीव । ४ काल छबसे कोगा नवमे कोण छवमें काल, नवसे अजीव | ५ पुद्गल छवमे कोण नवमे कोण छवमें पुद्गल, नवसे अजीब, पुन्य, पाप बंध | ६ जीव, छबमें कोण नवमे कोण कवमें नौव, नवसे' जीव, आस्तव संबर, निर्जरा मोक्ष । શુદ્ધ
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy