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________________ ( १२५ ) प्रासरी निवद्य के अशुभ जोग सावध छै। ६ संबर सावद्यक निवंद्य निर्वद्य छै ते किणन्याय ___ कर्मा ने रोके ते निवंद्य छ। ७ निरजरा सावद्य निर्वद्य निवंद्य छै ते किण न्याय कर्म तोडवारा परिणाम निवंद्य छ। ८ बंध सावध के निर्वद्य दोनू नहीं ते किणन्याय __अजीव के इण न्याय । ८ मोक्ष सापद्य के निर्वा, निर्वद्य छै, सकल कर्म मूकाय सिव भगवंत थया ते निर्वद्य छ। ॥लडी तोजी आज्ञा मांहि बाहिरकी॥ १ जीव आज्ञा मांहि के बारे, दोन है ते किणन्याय, जौवका चोखा परिणाम आज्ञा मांहि छै, खोटा परिणाम आज्ञा बाहिर छ। २ अजीव आजा मांहि बाहिर, दनू नहौं, अजीव WW के। ३ पुन्य आज्ञा मांहि के बाहिर दोन नहीं अजीव • छै दुगा न्याय। ४ पाप आज्ञा मांहि बारे दो नहीं अजीव छ । ५ आसव आज्ञा मांहिके बारे, दोडू छै, ते किणन्याय, आखव नां पांच भेद छै तिणमें
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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