SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कालथौ आदि अंत रहित भावथी अरूपौ गुणयौ चैतन्य गुण। २१ इकबीसमें बोले राशि दोय २ जीवराशि १ अजीवराशि २ २२ बावीसमें बोले श्रावक का १२ बारे बूत १ पहिला ब्रत में श्रावक स्थावर जीव हणवाको प्रमाण करे और बस जीव हालतो चालतो हावाका सउपयोग त्याग करे । २ ट्जा ब्रत में मोटको झठ बोलवाका सउपयोग त्याग करे। __ ३ तौजा ब्रत में श्रावक राजडण्डे लोकभण्डे इसी मोटको चोरी करवाका त्याग करे । '४ चौथा ब्रत में श्रावक मर्याद उपरांत मैथुन सेवा का त्याग करे। ५ पांचमां ब्रत में श्रावक मर्यादा उपरांत परिग्रह राखवाका त्याग करे । ६ छट्ठा ब्रतके विषे श्रावक दशों दिशिमें मर्यादा उपरान्त जाबाका त्याग करे । ७ सातवां ब्रतक विषे श्रावक उपभोग परिभोग का बोल २६ छबोस छै जिणारी मर्यादा उप
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy