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________________ { ६* } ★ मांहि मोटो, वले दोन सुपात्रे दाख्यो । श्रागम सांभलने जिनमत नोवो, मूल दवाधर्म भाष्योरे ॥ प्राणी 'नी ० ० ॥ ७ ॥ लोह पिता ज्यो तिरे महोदधि, कदा पश्चिम ऊगे भागा । सहज चग्नि पण शीतल होने, तोही हिंसा में धर्म म जाखरे ॥ प्राणी जी० ॥ ॥ चग्नि सौंचीनें कमल वधारे, चौर धोवा ने कादो आये । ज्यं कुगुरु प्रसंगे मूरख मानव, जीव हो धर्म जागो ॥ प्राणी जी० ॥ १० ॥ आगम वेद पुराण कुदान में कह्यो दया धर्म सारो । वलि जिनजी वचन सांचा जाणो तो, छः काय नौवांनें सत मारोरे ॥ प्राणी जो० ॥ ११ ॥ अर्थ अनर्थ धर्म जांगीने, जीव हो मन्द बुद्धि | पिं धर्म काजे छः काय हवे त्यांरी, श्रवा घणी के संधीरे # 'ग्रासी जी० ॥ १२ ॥ सूईरे नाके सौंधड़ो पोवे, ते किम चघो पैसे । हिंसा सांही धर्म प्ररूपे, ते सालो साल न 'बेसेर ॥ प्राणी जी० ॥ १३ ॥ पिता बिना पुत्र उपलो, मा बिन देटो जायो । यों हिंसा में धर्म प्ररुये, यो रहने 'अचरज आयोरे | प्राणी जौ० ॥ - १४ पार्श्वचन्द्र सूरि भइ परे, आचां सहित करुणा पाले । ते तर दुर्गति ना दुखटाले ज्ञान कला उजवालेरे ॥ प्राणो नो 1 ० ॥ १५ ॥ ATT 1
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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