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________________ FEBTERBA ने कह्यो महावीर । थारे बाह्मण सम्बन्धियाः । कह्यो छे, कुलथा मास मां भेद उदारर । कु ॥३५ : बाह्मण रा मत महावीर न माने, पिण त्यारे साख दिखाई । ज्यूं थाने प्रकरण -से-पिणः साख बताई भव जीव समझावण ताई ॥ कु० ॥३६ ॥ मुख से कह । प्रकरण सहु मानां, तो दूतरा. बोल न मानो कि लेखे। अभिन्तर आंख हिया से फटी, - आप भौख्या सामो नहीं देखरे ॥ कु० ॥ ३० ॥-- वले मुख से कहा जिन आज्ञा मानां, पिण आज्ञा रौ नहीं ठोक। आजा रो नाम लेोई झूठ बोल , मो प्रतक्ष पाषंडीकर । कुः । ॥ ३८ ॥ सूर्याभ ने वांदन रौ आना, पिण नाटकरी - आन्ना नहीं दीध। मन माहि नाटक ने नहौं, अनुमोद्यो, रायग्रसेणि प्रसिद्धरः ॥, कु० ॥ ३६ वर्धमान । जिन भागे नाटकरी, आज्ञा न दौधौ तहतौक। तो. प्रतिमा भागे माजा किम देशी, ओ,तो पिण मांधा ने नहौं छे ठौंकर ॥ कु० ॥ ४० ॥ आज्ञा अन्जिा कर रह्या ए सूर्ख, माज्ञा रा मुढ अजाण । भोला ने भरम । में पाड बिगोया, ते पिण डुबै कर कर ताणरः ॥ कु०७४ ॥४१॥ जिन आज्ञा, मांहि धर्म कहो, जिन आजा बारे नहौं अंश । ए समयक्त रा मुल मुढ आजाण, हण रह्या जीव निधंसर । कु० ॥ ४२ ॥ कही कही ने
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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