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________________ ( ७८ ) अपमाफ कहू निर्जराऽधिकार । १ ने श्रावक साधु ने सचित अने अतूझतो देवै, तो अल्प पाप बहु निर्जरा हुवै तेह नो न्याय। (भगवती श० ८ उ०६) २ साधु ने अप्राशुक अशेषगौक आहार दौधा अल्पायुष वान्ध। (भगवती श०५३०६) ३ साधु रे अशुद्ध आहार अभक्ष कह्यो। (भगवती श० १८ उ०१०) ४ श्रावक ने प्राशुक एषणोक ना देवगाहार कह्या । (उववार्ड प्रश्न २०) ५ आनन्द श्रावक कह्यो कल्पै मुझ ने श्रमणा निग्रन्थ ने प्राशुक एषणीक अशनादिक देवो । (उपासक दशा अ०१) (क) आधा कर्मी अने अतृभातो आहार ए निर्वद्य छ एहवो मन में धारे तथा प्ररुपै ते बिना आलीयां मरे तो विगधक कन्यो। (भगवती २० ५ उ० ६) (ख) जे श्रावक प्राशुक एघगीक अशनादिक साधुने दई समाधि उपजावे, तो पाको समाधिपावै । (भगवनी ०७ ३०)
SR No.010204
Book TitleJain Bhajan Mala
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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