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________________ १० राग द्वेष ने अभावे एकलो ऊभी रहै पिण भिख्यास्यां ने उल्लङ्घी न जाय। __ (उत्तराध्ययन अ० १ गा० ३३) ११ रागद्दष ने अभाव एकलो कही। . .. (उत्तराध्ययन अ० १ गा०१०) १२ जे ई रागद्देष ने अभाव ज्ञानादि सहित एकलो विचरस्यू इम विचारी दीक्षा लेवे। (सूयगडांग श्रु० १ ० ४ उ०१ मा० १) १३ घर छोडौ रागद्दष ने अभाव एकलो विचरै। (उत्तराध्ययन अ० १५ गा०१६) १४ तीन मनोरथ में चिन्तवै जे किंवार है एकलो घई दशविधि यति धर्म धारौ विचरस्यूं तेह नो न्याय । १५ गुरु कह्यो-हे शिष्य ! तोने एकलपणो म होज्यो। (आचारांग श्रु० १ अ०५ उ०४) - - (८ उच्चार पाहवयाधिकारः । १ वड़ी नौति या लघु नीति परठी ने वस्त्र करी पूछ नहौं तथा पूछता ने अनुमोदै नहौं, तो प्रायश्चित कयो। (निशीथ उ०४ चोल ३७)
SR No.010204
Book TitleJain Bhajan Mala
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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