SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * ( ६६ ) ५ अठारह पाप ना विरमण ने रूपी कह्यो । 1. I. ( भगवती श० १२ उ०५ ) ६ अठारह पाप ना विरमण ने जीव द्रव्य कह्यो । ( भगवती श० १८ उ० ४ ) € ६ जीव भेदाऽधिकारः ; १ विशिष्ट अवधि रहित ने अज्ञीभूत कह्यो । ( पन्नवणा पद १५ उ० १ ) २ नन्हा वालक तथा बालिका ने असंजीभूत कह्या । ( पनवणा पद ११ ) ३ पाठ सूक्ष्म कह्या । ( दशवेकालिक अ० ८गा० १५ ) ४ तेउ वाउ मे तस कह्या । { ( जीवाभिगम प्रश्न १ ) ५ सम्मूर्च्छिम मनुष्य ने पर्याप्ता अपर्याप्ता विहुं नामे ¿ करी बोलाव्यो । ( अनुयोग द्वार ) ६ असुर कुमार ने उपजती वेलां वे वेद कह्या । ( भगवती श० १३ उ० २ )
SR No.010204
Book TitleJain Bhajan Mala
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy