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________________ ( ४७ ) अनुकम्पाऽधिकार १ असंयती जीवां रो जीवणो बांछणो घणे ठामे वयों ते साख रूप बोल। २ पोताना कर्म खपावा तथा अनेरा ( आर्य क्षेत्र ना मनुष्य ) ने तारिवा निमित भगवान धर्म कहै। मिण असंयती जीवा ने बचावो अर्थे नहीं। (सूयगडाँग श्रु० २ अ० ६ गा० १७-१८) ३ पोताना पाप टालवा भणी नेमनाथ भगवान पाछा फिया। (उत्तराध्ययन अ० २२ गा० १८-१६) ४ मेघकुमार नो जीव हाथी ने भवे सुसलानौ अनुकम्या कोधो, सुसला ने चार नामे करौ वोलायो। (ज्ञाता अ०१) (क) तथा मढाई निग्रन्थ ने छः नामे करी बोलायो। (भगवतो श० २ उ०१) रौ नो कल्प 'वहाय गहाय' पाठ नो अर्थ। (दशाश्रुतस्कन्ध अ०७) ६ रागद्वेष प्राणी 'मार तथा मत मार' इम कहिवो ' वा । (सूयगडांग श्रु. २ अ०५ गा० ३०) ७ गृहस्थां ने मांहो मांही लड़ता देखी-एहने हण
SR No.010204
Book TitleJain Bhajan Mala
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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