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________________ । ३१ ). पवतार ॥ सु० ॥३॥ उगणीसै तेतीसमें जी, कांई फागण मास मभार ॥ चे ॥ शुभ नक्षत्र आवियोजौ, काई प्रसव्यो पुन उदार ॥ सु० ॥ ४॥ जिन मारग दीपाव्यो जौ, काई भिन २ दिया रे समझाय ॥ चे० ॥ बुद्धि उतपात थाहरौ धौ जी, काई सौख्या सूत्र अथाय । सु० ॥ ५ ॥ उगणीसै चमालौस में जौ, कांई लोधो संयम भार ॥ चे० ॥ गुण कठे लग बरणवं जी, काई कहता न आवे पार ॥ सु० ॥ ६ ॥ चौमासो चाहूँ सास्तो जौ, काई भव जौव बसो जिन धर्म ॥ चे० ॥ मुनि ठंडीरामजी बताव्यो जौ, काई असल धर्म नो मर्म ॥ सु० ॥ ७॥ उगणौसै छेयासी समै जौ, काई माघ मास शुक्ल मझार ॥ चे० ॥ टोकू तोलू इम विनवे जो, काई निज मुख बार हजार ॥ सु० ॥८॥ ॥ ढाल ४ थी॥ (उमादे भटियाणी की एदेशी) पहलौ तो सुमिरूं हो ऋषभादिक महावौर ने, कांई बरते जय जयकार। गुण ओलखने गावे हो । सुख पावे दुःख दूरा टले, कांई नाम लिया निस्तार ॥ १ ॥ भिक्षु गणि सुखकारी हो, गुणधारी मुरधर देखें। काई ग्राम कंटालियो जान, सूत्र सिद्धान्त वांच्या हो॥ रस खांच्या संयम पालवा, कांई गुण रतना की खान
SR No.010204
Book TitleJain Bhajan Mala
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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