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________________ ११० नोड और गीता का समावन करना चाहिए । उपर्युक्त सुत में उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला है कि इनमें से प्रत्येक के प्रति गृहस्थोपासक के क्या कर्तव्य है। पुत्र के माता-पिता के प्रति कर्तप-(१) इन्होंने मेरा भरण-पोषण किया है अतः मुझे इनका भरण-पोषण करना चाहिए। (२) इन्होंने मेरा कार्य (सेवा) किया है अतः मुझे इनका कार्य (सेवा) करना चाहिए। (३) इन्होंने कुल-वंश को कायम रखा है, उसकी रक्षा की है अत: मुझे भी कुल-वंश को कायम रखना चाहिए, उसकी रक्षा करनी चाहिए । (४) इन्होंने मुझे उत्तराधिकार (दायज्ज) प्रदान किया है अतः मुझे भी उत्तराधिकार (दायज्ज) प्रतिपादन करना चाहिए (५) मृत-प्रेतोंके निमित्त श्राद्धदान देना चाहिए। माता-पिता का पुत्र पर प्रत्युपकार-(१) पाप कार्मों से बचाते है (२) पुण्य कर्म में योजित करते है (३) शिल्प की शिक्षा प्रदान करते हैं (४) योग्य स्त्री से विवाह कराते हैं और (५) उत्तराधिकार प्रदान करते हैं । माचार्य (शिक्षक) के प्रति कर्तव्य-(१) उत्थान-उनको आदर प्रदान करना चाहिए। (२) उपस्थान-उनकी सेवा में उपस्थित रहना चाहिए । (३) सुश्रुषा-उनकी सुश्रुषा करनी चाहिए। (४) परिचर्या-उनको परिचर्या करनी चाहिए । (५) विनय पूर्वक शिल्प सीखना चाहिए । शिष्य के प्रति प्राचार्य का प्रत्युपकार-(१) विनीत बनाते हैं । (२) सुन्दर शिक्षा प्रदान करते हैं । (३) हमारी विद्या परिपूर्ण होगी यह सोचकर सभी शिल्प और सभी श्रुत सिखलाते हैं । (४) मित्र-अमात्यों को सुप्रतिपादन करते हैं । (५) दिशा (विद्या) को सुरक्षा करते हैं। पत्नी के प्रति पति के कर्तव्य-(१) पत्नी का सम्मान करना चाहिए । (२) उसका तिरस्कार या अवहेलना नही करनी चाहिए। (३) परस्त्री गमन नहीं करना चाहिए (इससे पत्नी का विश्वास बना रहता है)। (४) ऐश्वर्य (सम्पत्ति) प्रदान करना चाहिए । (५) वस्त्र-अलंकार प्रदान करना चाहिए । पति के प्रति पत्नी का प्रत्युपकार-(१) घर के सभी कार्यों को सम्यक् प्रकार से सम्पादित करती है । (२) परिजन (नोकर-चाकर) को वश में रखती है। (३) दुराचरण नहीं करती है । (४) (पति द्वारा) अजित सम्पदा की रक्षा करती है । (५) गृहकार्यों में निरालस और दक्ष होती हैं । मित्र के प्रति कर्तप-(१) उन्हें उपहार (दान) प्रदान करना चाहिए । (२) उनसे प्रिय-वचन बोलना चाहिए । (३) वर्ष-वर्या वर्षात उनके कार्यों में सहयोग प्रदान
SR No.010203
Book TitleJain Bauddh aur Gita ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1982
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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