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________________ सामाजिक मैतिकता के कंगोय तत्त्व : अहिंसा, मनामह और परिग्रह ही भिन्न-भिन्न होगी। यही नहीं, एक देश के नागरिक की आवश्यकताएँ दूसरे देश के नागरिक की आवश्यकताओं से भिन्न होगी । युग ये. आधार पर भी आवश्यकताएं बदलती हैं । अतः परिग्रह की मीमा का निर्धारण देश, काल, व्यक्ति और परिस्थिति पर निर्भर होगा। आज अर्थशास्त्री भी इस बात को मानकर चलने है कि जो वस्तु एक व्यक्ति के लिए आवश्यक है वे ही दूसरे के लिए विलासिता हो सकती हैं। एक कार डाक्टर के लिए आवश्यक और विश्वविद्यालग के केम्पम में रहने वाले प्रोफेसर के लिए विनामिता की वस्तु होगी। अतः परिग्रह-मर्यादा का कोई सार्वभौम मानदण्ड सम्भव नही है । तो क्या इस प्रश्न को व्यक्ति के स्वविवेक पर खुला छोड़ दिया जाये ? यदि व्यक्ति विवेकशील और संयमी है तब तो निश्चय ही इस सम्बन्ध में निर्णय लेने का अधिकार उसे है, किन्तु स्थिति इसमे भिन्न भी है। यदि व्यक्ति स्वार्थी और वागनाप्रधान है तो निश्चय ही निर्णय का यह अधिकार व्यक्ति के हाथ से छीनकर समाज के हाथों में गौंगना होगा, जैसा कि आज समाजवादी व्यवस्था मानती है । यद्यपि इस स्थिति में चाहे गम्पदा का समवितरण एवं मामाजिक शान्ति मम्भव भी हो किन्नु मानक गान्ति गम्भव नहीं होगी। वह तो तभी मम्भव होगी जब व्यक्ति की तृष्णा शान्त होगी और जीवन में अनासक्त दृष्टि का उदय होगा । जब अपरिग्रह अनाक्ति से फलित होगा तभी व्यक्ति और समाज में मच्ची गान्ति आएगी।
SR No.010203
Book TitleJain Bauddh aur Gita ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1982
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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