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________________ आचार्य चरितावली गालावरणी।। जान गुरु ने एक दिन छेदन कीना, खंड खंड कर शिष्यों को दे दीना। शिवभूति के मन में खेद अपारा, पढ़त पूर्व को लिया उलट मत घोरा। वस्त्र सहित का संयम नहिं सुखकारी ।। लेकर० ॥१२॥ अर्थ.-गुरु को इस बात का पता चला तो उन्होंने एक दिन उस बहुमूल्य वस्त्र के खंड खंड कर उसे अन्य शिप्यो में बाँट दिया । शिवभूति ने आकर जाना तो उसके मन में इससे बहुत खेद हुआ । इस पर से पूर्व श्रुत को पढ़ते हुए उसने यह भ्रान्ति पकड़ ली कि वस्त्र महित का सयम मुखदायी एवं निर्दोष नहीं होता ।।१।। || लावणी ॥ मुनि मन पाया दुख प्रकट नहीं बोले, शास्त्र वरण कर सहसा मन को खोले । वस्त्र त्याग कर पूरा साधन करना, कहे गुरु से हो तव ही भव तरना। आकाशाम्बर मत चला हुए व्रतधारी लेकर०॥१८॥ अर्थ:-जन के सम्मान हेतु मुनि शिवभूति बाहर से तो कुछ नहीं बोल पर मन ही मन उनको उड़ा दुख हो रहा था। एक दिन शास्त्र में जिन कल्प का वर्णन चला तब मुनि सहसा बोल -"ठीक है, वस्त्र का सम्पूर्ण त्याग कर विचरना ही अपरिग्रही मुनि का मार्ग है । पक्षी पात्रो को समेट कर चलता है पास में कुछ भी लेकर नहीं चलता, हम भी वैसे ही शुद्ध मार्ग का आराधन करना चाहिये।' इस प्रकार की वारणा मे भिवभूति ने दिगम्बर परम्परा को चालू || लावणी ।। श्वेताम्बर अरु आकाशाम्बर कहलाये, अमएसंघ में भेद तभी प्रगटाये ।
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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