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________________ شر आचार्य चरितावली - , , . , . लक्षणं से कर ज्ञान पिण्ड नहीं बहरे। , देख एपणा सुर संतोषा भारी ॥ लेकर० ॥६६॥ . . . अर्थ:-धनगिरि के परमप्रिय शिष्य बज्र बड़े नामी प्राचार्य हुए । किसी समय एक देव ने सार्थ बनाकर वाल मुनि की परीक्षा करने की ठानी। उसने वसति की रचना कर भिक्षा के लिये प्रार्थना की। असामयिक जल वर्षा से भूमि पर अगणित मेढकिया घूमने लगी, जिन्हें देख कर मुनि कुटी मे ठहर गये, भिक्षा को नही गये। जव वर्षा की बाधा दूर हुई तो आगे बढे पर भिक्षा मे विना मौसम की वस्तुए' देख कर विचार किया और लक्षणो से देव माया समझकर आहार ग्रहण नहीं किया। उनकी इस ऐपणा वृत्ति को देखकर देव वडा प्रसन्न हुआ। ॥ लावरणी। प्रतिभाशाली देख गुरु ने सोचा, बाल मुनि का कौशल लखपालोचा। नामान्तर विचरण को आप पधारे, " मुनिजन को अनुयोग वन अवधारे । ' . कर सब का सतोष हुए अधिकारी । लेकर० ॥१७॥ अर्थः-वज्रमुनि की शास्त्रीय ज्ञान प्रतिभा अच्छी थी । एकदिन गुरुके बाहर जाने पर वे मुनियो के वेष्टनो को सामने रखकर शास्त्र वाचना करने लगे । ज्योही आचार्य के आने का संकेत मिला वे वेप्टनो को एक तरफ रखकर तत्काल पाये और उन्होने आचार्य के चरणो का प्रमार्जन किया। प्राचार्य ने दूर से ही सव हाल देख लिया था अत वे बाल मुनि की योग्यता से प्रसन्न हो सोचने लगे कि इसकी योग्यता का विकास करना चाहिये । कुछ दिनो के लिये प्राचार्य स्वयं तो आसपास के गावो में विहार को निकल पडे और शिष्यो की शास्त्र वाचना के लिये वज्र मुनि को नियुक्त कर गये । वज्र मुनि की शास्त्र वाचना इतनी रुचिकर और बोधप्रद रही कि उन्होने शीघ्र ही सभी शिष्यो का आदर प्राप्त कर लिया ।।६७।।
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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