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________________ प्राचार्य चरितावली "मा का उत्तर था, हप्टिवाद, धर्मशास्त्र ।" पुत्र ने फिर पूछा, "इसका ज्ञान कहाँ से पाऊँ ?" "मा बोली, "निर्ग्रन्थ सतो की सेवा से यह जान मिलता है। और वैसे संत आचार्य तौसलीपुत्र अपने नगर मे ही विराजमान है।" ___ आचार्य तौसलीपुत्र का परिचय पाकर रक्षित वहाँ जाने को तैयार हो गया ॥७॥ लावरणी।। प्रात मार्ग में मिला विप्र एक नामी, इक्षु दंड नव भेट लिये शुभकामी । वोला उसको कार्य प्रसंगे जावें, माताजी को घर में भेट दिरावें । मंगल दर्शन मुदित हुई महतारी लेकर०॥७७॥ अर्थ-प्रातःकाल जब रक्षित ने प्रस्थान किया तव मार्ग मे एक ब्राह्मण उन्हें मिला,जो गन्ने के नौ डडो की भेट लेकर उनसे मिलने को पाया था ! रक्षित ने उसे प्रणाम कर कहा, "मै किसी कार्य से जा रहा हूँ। आप - यह भेट माताजी को घर मे दे देवे।" प्रस्थान मे मंगल दर्शन हुआ, इससे मां वडी प्रसन्न हुई ।। ७७ ।। - लावणी।। जाना नव पूरव का ज्ञान मिलेगा, खंड दशम का पुत्र प्राप्त कर लेगा। कैसे गुरु तट जाना साथी देखे, श्रावक ढड्ढर वंदन करता लेखे । गरणी ने आगत से पूछा अवधारी ।लेकर०॥७८।। अर्थ -ब्राह्मण से गन्ने की भेट लेकर मा ने विचार किया कि ये नौ गन्ने पूरे और दशवे का एक टुकडा है, अत मालूम होता है कि मेरा पुत्र नव पूर्व पूरे और दशवे पूर्व का कुछ अश प्राप्त करेगा।
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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