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________________ १४० प्राचार्य चरितावली दीक्षा ली। दो वर्ष के बाद सयम मार्ग की गास्त्र से जानकारी होने पर इन्होने गुरु से निवेदन किया और थोमरणजी व सखा जी को साथ लेकर स० १६६२ मे खभात मे शुद्ध सयम मार्ग को स्वीकार किया। लवजी के दीक्षा समय पर विभिन्न प्रकार के उल्लेख प्राप्त होते है। पर इतिहास के सदर्भ को देखते हुए सं० १६६२ के आसपास ही इनका दीक्षित होना उचित जचता था। प्राचार्य लवजी महाराज से सम्बन्धित समुदायें आपकी शाखा मे अभी चार समुदाये विद्यमान है । (१ हरदास जी के पदानुसारी पूज्य श्री अमरसिह जी महाराज का समुदाय (पंजाब) (२) पूज्य श्री कानजी ऋषि का समुदाय, (३) , तारा ऋपि जी महाराज का समुदाय (गुजरात) (४) , रामरतनजी , , इनकी प्राचार्य परम्परा क्रम से बताई जाती है . བ ེ ོ ི ཙེ ཚེ (परिशिष्ट) पहले समुदाय की प्राचार्य परम्परा पूज्य श्री लवजी ऋषि सोमजी ऋषि (३) , हरिदास जी । वृन्दावनजी स्वामी भगवान (भवानी) दासजी महाराज मलकचदजी महाराज लाहोरी (आप बड़े उग्र___ मार्गी थे),
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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