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________________ आचार्य चरितावली एक प्रसिद्ध महापुरुष हुए है, जिनका नाम भारत भर में प्रसिद्ध है। क्योकि शास्त्रो पर टव्वा लिखकर उन्होने समाज का सार्वदेशिक । उपकार किया है। इनका जन्म काठियावाड के हालार प्रान्त मे जाम शहर मे हुआ था, जिसको नगर भी कहते है । दशा श्रीमाल जाति के जिनदास आपके पिता और शिवा बाई आपकी माता थी । अापको वचपन से ही सत्संगति से प्रेम था । जव ाप १५ वर्ष के थे तव लोकागच्छ के श्री पूज्य रत्नसिहजी के शिष्य श्री देवजी महाराज वहा पधारे। आप नित्य उनके व्याख्यान मे जाया करते थे । उपदेश सुनते सुनते आपको वैराग्य हो गया। लेकिन बहुत समय तक माता पिता ने इन्हे दीक्षा ग्रहण करने की अनुमति प्रदान नहीं की जिससे इन्हे रुकना पडा। आखिर आपकी दृढ भावना का परिणाम यह हुआ कि आपके साथ आपके पिता भी दीक्षित हो गये । आप वडे वुद्धिशाली थे। कहा जाता है कि आप केवल दोनो हाथो से ही नहीं, अपितु दोनों पावो से भी कलम पकड़ कर लिख सकते थे। कुशाग्र बुद्धि के कारण आपने अल्प समय मे ही शास्त्रो का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया । शास्त्रो के पढने से जब आपको मालूम हुआ कि शास्त्र मे भगवान् की आजा कुछ और है और आज के साधु-वर्ग का आचार कुछ दूसरे ही प्रकार का है, तव आपने गुरुजी से निवेदन किया कि-"महाराज । आज का साधुवर्ग भगवान् की आज्ञा से वहुत उल्टा चल रहा है, इसलिये हमको गच्छ का मोह छोडकर कष्टो और विरोधो का मुकाबला करना पडेगा, शासन सेवा के लिये हमे उनकी परवाह नही करनी चाह्येि । यदि आप मुझे साथ दे तब तो बहुत ही अच्छी बात है, अन्यथा मुझे प्राज्ञा दीजिये, मै अपने शरीर का बलिदान देकर भी धर्म सेवा करने को तैयार हूँ।" गुरुजी ने कहा-"अच्छा, यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो एक काम करो। आज की रात तुम शहर अहमदावाद के वाहर दरिया खान के स्थान पर वितायो, फिर मैं खुशी से तुम्हे स्वीकृति दे दूंगा।' धर्मसिंहजी ने वैमा ही किया। दरिया पीर के उस भयंकर स्थान में
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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