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________________ प्राचार्य चरितावली १२६ उन व्यक्तियों ने शिवजी ऋषि के विरुद्ध वादशाह के कान भरे। इसके परिणामस्वरूप वादशाह ने पूज्य शिवजी को चातुर्मास मे ही दिल्ली वुलाया। स्थानाग सूत्र के वचनानुसार विहार योग्य कारण देख कर शिवजी ऋपि चातुर्मास में ही दिल्ली पधार गये । वादशाह ने उनके साथ वार्तालाप किया और पूज्य शिवजी ऋपि के उत्तर प्रत्युत्तर से वादशाह वडा प्रभावित और प्रसन्न हुआ । वादशाह ने पूज्य शिवजी ऋपि को स० १६८३ को विजयादशमी को पालकी सरोपाव के सम्मान से सम्मानित कर पट्टा लिख दिया। इस पालकी सरोपाव के सम्मान ने शिवजी ऋपि को ही नही लोकागच्छ के समस्त यति मडल को छत्रधारी एव गादीधारी वना दिया। छत्रधारी बनने के पश्चात् पूज्य शिवजी ऋपि जव अहमदावाद आये उस समय झवेरीवाड़ा के नवलखी उपाश्रय मे लोकागच्छीय थावको के वडी सख्या मे घर थे। धर्मसिहजी आदि पूज्य शिवजी के १६ शिप्य थे, गच्छ मे परिग्रह का प्रसार देख कर धर्मसिहजी आदि ने गच्छ का परित्याग कर दिया। (१४) श्री संघराज ऋषि : आपका जन्म १७०५ की आपोड सुदी १३ को सिद्धपुर मे हुया । आप पोरवाल जाति के थे। संवत् १७१८ मे आप पिता और वहिन के साथ पूज्य शिवजी ऋषि के पास दीक्षित हुए । आपने जगजीवनजी के पास शास्त्राभ्यास किया और स० १७२५ मे पाप प्राचार्य पद पर ग्रासीन हुए। स ० १७५५, फाल्गुन शुक्ला ११ के दिन, ११ दिन के सथारे के पश्चात् ५० वर्ष की आयु मे आपका आगरा शहर मे स्वर्गवास हुआ। (१५) श्री मुखमल्लजी ऋषि : श्री संघराजजी के पाट पर ऋषि सुखमलजी हुए । जैसलमेर (मारवाड) के पास पासणी कोट ग्रामवासी, सकलेचा गोत्रीय ओसवाल देवीदास के आप पुत्र थे, आपका जन्म स० १७२७ में हुआ, आपकी माता का नाम रभा वाई था। स० १७३९ मे ऋपि संवराजजी के पास अापने दीक्षा ग्रहण की। आपने १२ वर्ष तक
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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