SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य चरितावली सम्प्रदाय में दोष न तब लग जातो, वाद करण मे करे न अपनी हानो । धर्म-नीर हित सम्प्रदाय की क्यारी ॥ लेकर० ॥ २०२॥ सम्प्रदाय की उपयोगिता ११७ अर्थः- देश मे सुलभता से धर्म प्रचार करने के लिये छोटे छोटे वग बनाकर जनता को सन्मार्ग पर चलाना सप्रदाय का काम है । सम्प्रदायो ने देश मे सदाचार और सुनोति का रक्षण किया है । यदि परस्पर टकरा कर अपनी शक्ति व्यर्थं नही खोये तो उसमे कोई दोप नहीं है । वादविवाद मे पड़कर इन सम्प्रदायो को अपनी हानि नही करनी चाहिये । धर्म के स्वच्छ जल की रक्षा के लिये सम्प्रदाय एक क्यारी है । विना सम्प्रदाय के धर्म की रक्षा देह विना ग्रात्मा के अस्तित्व की तरह है । सम्प्रदाय की उपयोगिता धर्म रूपी जल को निर्मल एव सुरक्षित रखने मे ही है ||२०|| ॥ लावणी ॥ संप्रदाय का वाद दोष दुखकारी, परगरण की अच्छी भी लगती खारी । पर उन्नति को देख द्रोह मन लावे, स्पर्धा से अपने को नही उठावे । वाद यही है अशुभ अमंगलकारी || लेकर० | १२०३ || सम्प्रदाय का दोष अर्थ — अपनी मान्यता का आग्रह ही दुखदायी दोष है । अपनेपन के आग्रह से अन्य समुदाय की अच्छी वात को भी बुरी मानना और अपनी वुरी बात को भी राग से अच्छी समझना, यह सम्प्रदायवाद है । सम्प्रदायवादी दूसरे की उन्नति देखकर मन ही मन जलता रहता है किन्तु स्पर्धा से दूसरे का अनुसरण कर अपना उत्थान नही कर पाता । यह बाद ही
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy