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________________ आचार्य चरितावली एक नई उलझन लावरणी॥ दिल्ली में प्राचार्य मिलन हा शानी, पर्व ऐक्य की बात सूरि ने मानी । परामर्श पीछे मुनियो से लीना, ऐक्य देख खतरे मे मुनि मन भोना। पूर्ण ऐक्य हित देई नीति विसारी ॥ लेकरः ॥१४॥ अर्थः -- भारत की राजधानी दिल्ली मे सगठन प्रेमी कार्यकर्ताओं के प्रयत्न से तेरा पंथ, दिगम्बर और स्थानकवासी श्रमणसघ के प्राचार्यो का शानदार मिलन हुया । जैन एकता के प्रसग से प्रा० तुलसीजी ने कहाश्वेताम्बरो के सांवत्सरिक पर्व की समाप्ति और दिगम्बरों के सांवत्सरिक पर्व का प्रारभ एक दिन है। उसे सर्व सम्मत पर्व मान लिया जाय तो समस्या सुलझ सकती है। प्राचार्य श्री ने कान्फ्रेन्स के परामर्श से इस निर्णय को स्वीकार कर लिया। बाद मे मुनियो से मंजूरी लेने आये, जब कि मुनि परामर्ग समिति को पहले पूछना था । अधिकाश मुनियो ने कहाजैन समाज का सम्पूर्ण ऐक्य होता हो तो भीनासर सम्मेलन के निश्चयानुसार हम सर्वथा तैयार है । अन्यथा ४६-५० दिन की परम्परा को छोड़ना उचित नहीं समझते,क्योकि ऐसा करने से हम सौराष्ट्र के स्थानकवासी जैन सघ से भी अलग पड़ जाते है ।।१६४।। मध्यम मार्ग ॥ लावणी ॥ संघ भेद टालन का मार्ग निकाले, श्रावण में कर श्रमरण, भादवा पाले। शासनहित सबने यो मान्य कराया, अगला निर्णय वर्ष मध्य मे चाह्या। पर प्रागे को निर्णय दिया विसारी ॥ लेकर० ॥१६५।। अर्थ:--पर्व के निमित्त से श्रमणसघ का भंग न हो जाय इसलिये
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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