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________________ श्रावकाचार . ११७ पोषधोपवास व्रत के निम्नोक्त पाच अतिचार हैं : १ अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित शय्यासंस्तारक, २.अप्रमाजित-दुष्प्रमार्जित शय्यासंस्तारक, ३. अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित उच्चारप्रस्रवणभूमि, ४ अप्रमार्जित-दुप्पमाजित उच्चारप्रस्रवणभूमि, ५ पौषधोपवास-सम्यगननुपालनता । शय्या अर्थात् वसति-मकान और सस्तारक अर्थात् विछौना-कंबलादि का प्रतिलेखन अर्थात् प्रत्यवेक्षण-निरीक्षण बिलकुल न करना अथवा ठीक ढंग से न करना अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित शय्यासंस्तारक अतिचार है । शय्या व सस्तारक को प्रमाजित किये विना अर्थात् पोछे बिना-साफ किये विना अथवा विना अच्छी तरह साफ किये काम मे लेना अप्रमाजित-दुष्प्रमार्जित शय्यासंस्तारक अतिचार है। इसी प्रकार मलमूत्र की भूमि का विना देखे अथवा अच्छी तरह न देखकर उपयोग करना अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित उच्चारप्रस्रवणभूमि अतिचार है तथा साफ किये विना अथवा विना अच्छी तरह साफ किए उपयोग करना अप्रमाजित-दुष्प्रमाणित उच्चारप्रस्रवणभूमि अतिचार है । पौषधोपवास का सम्यक् प्रकार से पालन न करना अर्थात् आत्मपोषक तत्त्वो का भलीभांति सेवन न करना पौषधोपवास-सम्यगननुपालनता अतिचार है । इन सव अतिचारो से दूर रहने वाला श्रावक पौषधोपवास व्रत की यथार्थ आराधना कर सकता है। प्रथम चार अतिचारो मे अनिरीक्षण अथवा दुनिरीक्षण एवं अप्रमार्जन अथवा कुप्रमार्जन के कारण हिंसादोप की संभावना रहती है-जीवजन्तु का हनन होने की शक्यता रहती है। ४ . अतिथिमविभाग-~यथासविभाग अथवा अतिथिसंविभाग
SR No.010197
Book TitleJain Achar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1966
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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