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________________ श्रावकाचार : ९३ छोड सकता है। , गृहस्थ के लिए साधारणतया मृषावाद का सर्वथा त्याग अर्थात् सूक्ष्म असत्य का परित्याग शक्य नही होता। हाँ, वह स्थूल मृषावाद का त्याग अवश्य कर सकता है। इसीलिए श्रावक के लिए स्थूल प्राणातिपात-विरमण के विधान की भांति स्थूल मृषावाद-विरमण का भी विधान किया गया है। स्थूल झूठ का त्याग भो साधारणतया स्थूल हिंसा के त्याग के ही समान दो करण व तीन योगपूर्वक होता है । स्थूल झूठ किसे समझना चाहिए ? जिस झूठ से समाज में प्रतिष्ठा न रहे, साथियों मे प्रामाणिकता न मानी जाय, लोगो मे अप्रतीति हो, राजदण्ड का भागी होना पडे उसे स्थूल झूठ समझना चाहिए। इस प्रकार के झूठ से मनुष्य का चतुर्मुखी पतन होता है। अनेक कारणो से मनुष्य स्थूल झूठ का प्रयोग करता है। उदाहरण के लिए अपने पुत्र-पुत्रियो के विवाह के निमित्त सामने वाले पक्ष के सम्मुख झूठी प्रशसा करना-करवाना, पशु-पक्षियो के क्रय-विक्रय के निमित्त मिथ्या प्रशसा का आश्रय लेना, भूमि के सम्बन्ध मे झूठ बोलना-वुलवाना, अन्य वस्तुओं के विषय मे झूठ का प्रयोग करना, नौकरी आदि के लिए असत्य का आश्रय लेना, किसी की धरोहर आदि "दवाकर विश्वासघात करना, झूठी गवाही देना-दिलाना, रिश्वत खाना-खिलाना, झूठे को सच्चा या सच्चे को झूठा सिद्ध करने का प्रयत्न करना आदि । श्रावक के इस प्रकार का झूठ बोलने-बुलवाने का मन, वचन व तन से त्याग होता है।
SR No.010197
Book TitleJain Achar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1966
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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