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________________ संक्षिप्त इतिहास] सकता है, और यह उपलब्ध भी नहीं है । अतः यह स्पष्ट है कि १२वीं-१३वीं शताब्दि से पहले के हिन्दी ग्रन्थ नहीं मिलते हैं।' हिन्दी की उत्पत्ति भले ही ७वीं शताब्दि में मानी जाय, परंतु उसके साहित्यिक रूप का जन्मकाल १२वीं शताब्दि मानना ही उपयुक्त है । अभी तो इस समय से पहले के ग्रन्थ अपभ्रंश प्राकृत भाषा के ही मिलते हैं । यदि अपभ्रंश भाषा को ही प्राचीन देशी भाषा या हिन्दी माना जावे तो बात दूसरी है। हाँ, यह बात अवश्य है कि उस प्राचीन अपभ्रंश भाषा के साहित्य में हिन्दी भाषा की जड़ मौजूद थी। 'अपभ्रंश प्राकृत भाषा के साहित्य से ही उपरान्त हिन्दी का जन्म हुआ'-यह स्पष्टतः जानने के लिये आइये पाठक, पहले अपभ्रंश भाषा साहित्य में प्राचीन हिन्दी के पूर्व आभास का दिग्दर्शन कर लें। जैनियों के लिये यह गौरव की बात है कि अपभ्रंश भाषा का साहित्य प्रायः उनके आचार्यों द्वारा ही रचा गया था। यही क्यों, बल्कि विक्रम से पूर्व पाँचवीं शताब्दि से लगातार आजतक की मुख्य मुख्य भार. तीय भाषाओं को अपने साहित्य द्वारा जीवित रखने का श्रेय जैन लिखा है, जिसमें उन्होंने जैन अपभ्रंश साहित्य से अनेक अवतरण दिये हैं, परन्तु वे भी तेरहवीं शताब्दि से पूर्व के नहीं हैं। १. हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, पृ० १९-२० । २. प्रो० गुलाबरायजी एम. ए. ने अपने हिन्दी साहित्य का मुबोध इतिहास प. ४ पर हिन्दी साहित्य के कालविभाग के अन्तर्गत बोरगाधा काल अर्थात् सं० १०५० से हिन्दी का इतिहास प्रारंभ किया है। प्रो. धीरेन्द्र वर्मा ने माधुनिक मार्य भाषा काल सन् १... ई. से वर्तमान स्मय तक माना है।
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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